आज भी हर साल इस महामारी से 1000 से 3000 लोगों की होती है मौत
कैसे शुरू हुआ ब्लैक प्लेग ?
इन मुर्दा जहाजों के आने से बहुत पहले ही कई सारे यूरोपियन लोगों ने यह अफवाह सुन रखी थी की एक ग्रेट पेस्टीलेंस है जोकि सब को तबाह करते हुए व्यापारिक रास्तों से होते हुए पूरब से चला आ रहा है। और ऐसा था भी क्योंकि 1340 ईसवी में इस बीमारी ने चाइना, इंडिया , परसिया, सीरिया और इजिप्ट को तबाह कर दिया था। यह माना जाता है कि यह महामारी एशिया में 2000 सालों पहले ही पैदा हो चुकी थी और वह व्यापारिक जहाजों के जरिए फैल रही थी। क्योंकि रिसर्च से यह साबित होता है कि जो कीटाणु उसके लिए जिम्मेदार था वह यूरोप में 3000 साल ईसा पूर्व से ही मौजूद था।Black Plague के लक्षण :
उन सूजे हुए भागों से खून और मवाद निकलता था जिसके बाद व्यक्ति को बुखार, ठंड लगना,उल्टी ,दस्त ,भयानक दर्द और फिर मौत हो जाती थी। यह बुबोनिक प्लेग सबसे पहले लसीका प्रणाली पर हमला करता था जिसके वजह से लिंफ नोड्स में सूजन आ जाती थी । और जब इसका इलाज नहीं किया जाता था तो यह इंफेक्शन खून और फेफड़ों में फैल जाता था।
ब्लैक प्लेग कैसे फैला ?
ब्लैक डेथ बहुत ही भयावह था और वह छुआछूत से बहुत तेजी से फैलता था। बस कपड़ों को छूने से ही यह बीमारी छूने वाले को पकड़ लेती थी। और बहुत ही भयावह रूप से जकड़ लेती थी। यह बीमारी इतनी खतरनाक थी कि जो आदमी पूरी स्वस्थ रुप से रात में अपने बिस्तर पर जाता था वह सुबह तक मौत के मुंह में मिलता था।आइए ब्लैक डेथ को समझते हैं :
आज वैज्ञानिक इस ब्लैक डेथ के कारणों को पूरी तरीके से समझते हैं। यह एक बेसिलस जिसका नाम Yersina Pestis है उस से फैलता है। फ्रेंच बायोलॉजिस्ट Alexander Yersin ने 19वीं सदी में इसकी खोज की।उन्होंने पता लगाया कि यह bacillus एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक हवा के माध्यम से पहुँचता था और ना कि केवल हवा से बल्कि जो कीटाणु और चूहे इससे ग्रसित थे उनके काटने से भी फैलता था। ऐसे मक्खी और चूहे पूरे यूरोप में उस समय कहीं भी पाए जा सकते थे। पर यह मुख्य रूप से जहाजों पर पाए जाते थे जिसके वजह से यह खतरनाक प्लेग एक यूरोपियन पोर्ट शहर से दूसरे शहर तक फैलता गया।Black death का इलाज :
फिजीशियन कच्चे और अपरिष्कृत तकनीकों पर ही निर्भर थे जैसे कि ब्लड लेटिंग और boil लांसिंग। यह तकनीक काफी खतरनाक थी और स्वच्छ भी नहीं थी। अंधविश्वास से भरी तकनीक जैसे की सुगंधित जड़ी बूटियों को जलाना या फिर गुलाब जल और सिरके में स्नान करना । पैनिक को झेलते हुए स्वच्छ लोगों ने बीमारी से बचने के लिए जो कुछ भी कर सकते थे उन्होंने किया। चिकित्सकों ने इलाज करने से मना कर दिया पुजारी और पंडितों ने अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया और दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद कर ली।भारी मात्रा में लोगों ने शहरों को छोड़कर गांव का रुख किया पर वह वहां पर भी इस बीमारी से नहीं बच पाए। इस बीमारी ने गायों, भेड़ों, बकरियों, सूअरों और मुर्गियों के साथ-साथ लोगों को प्रभावित किया।इस बीमारी से इतनी भारी मात्रा में भेड़े मारी गई कि पूरे यूरोप में ऊन की कमी हो गई। और बहुत सारे लोग खुद को बचाने के लिए अपने करीबियों को छोड़कर भाग गए।क्या यह ईश्वर की ओर से दंड था ?
क्योंकि लोगों को इस बीमारी के पीछे का कारण नहीं मालूम था तो वो इसे ईश्वर का दंड समझ रहे थे।उन्हें लगता था कि ईश्वर उन्हें उनके पापों के लिए दंडित कर रहा है। इस महामारी से निजात पाने का तब एक ही रास्ता बचता था कि ईश्वर का विश्वास जीता जाए। कुछ लोग यह मानते थे कि विधर्मीयों का नाश करके और अपने समुदाय को शुद्ध करके वह इस महामारी से बच सकते हैं। इसी दिशा में 1348 और 1349 में हजारों यहूदियों की हत्या कर दी गई।हजारों लोग इन इलाकों से भागकर पूर्वी यूरोप में जहां पर वह वहां के बजाय ज्यादा सुरक्षित रहते वहां पर चले गए।इस आतंक और अनिश्चितता का सामना करते हुए लोगों ने अपने पड़ोसियों को दंडित करना उनसे दूर रहना और कुछ लोगों ने भीतर की ओर मुड़ कर अपनी आत्मा की शुद्धि पर ध्यान दिया।
फ्लेजल्लांट्स :
अपर क्लास के कुछ लोगों ने फ्लेजल्लांट्स के कार्यक्रमों में भाग लिया जो कि एक नगर से दूसरे नगर जाते थे और पब्लिक में खुद को दंडित करके, प्रताड़ित करके प्रदर्शन करते थे। वह खुद को पत्तियों से पीटते थे जिनमें लोहे के खंजर लगे होते थे।वे खुद को दंडित करके ईश्वर को यह दिखाना चाहते थे कि वह अपने पापों का प्रायश्चित कर रहे हैं। साढ़े 33 दिनों तक यह कार्यक्रम चलता रहा और यह दिन में तीन बार किया जाता था। उसके बाद वह अगले नगर की ओर बढ़ते थे और फिर से यही कार्यक्रम चालू कर देते थे।इन कार्यक्रमों से लोगों को थोड़ी राहत तो पहुंची जो कि काफी हीन मालूम पड़ रहे थे पर कुछ समय बाद ही pope को इससे परेशानी होने लगी क्योंकि उसकी सत्ता जाती हुई दिखाई पड़ रही थी। पॉप नहीं बर्दाश्त कर सकता था कि उसके रहते हुए धार्मिक कार्यों की बागडोर कोई और हथिया रहा था। इस कारण पॉप के विरोध से यह कार्यक्रम पूरी तरह से नष्ट हो गया।
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